आज हिंदी दिवस पर यह कविता मैंने अपने पिता जी की याद में लिखी है जिन्हे मैंने इसी वर्ष अप्रैल मैं खोया है। हालाँकि उनका देहांत ४ मई को हुआ परन्तु मैंने उन्हें आखिरी बार अप्रैल में ही देखा था जिसके उपरांत मैं खुद अस्पताल में भर्ती हो गयी थी। आज यह कविता लिखने का प्रमुख कारण यह है की आज से ठीक चार महीने पहले यानि १४ मई को ही मुझे अपने पिता जी के देहांत की खबर मिली थी। आज की तारीख़ को ही जिस सच्चाई का एहसास होते हुए भी मेरा दिल मानना नहीं चाह रहा था वह मेरे सामने आयी थी।
मुझे तू याद हैं ...
मुझको याद है, तेरा प्यार से बेटा बुलाना,
तू ठीक है ? यह पूछ चिंता को जाताना,
मुझपे गर्व है, यह बार बार, तेरा दोहराना,
आगे बढ़ती रहे, पढ़ती रहे, यह कहते जाना।
तेरा यूँ इर्द गिर्द मेरे, दुनिया अपनी बसाना,
मेरा एक अश्रु देख, दुनिया से, यूँ टकराना,
थोड़ा कहने भर से, बातों को यूँ , मान जाना,
विदा करके भी, मेरी चिंता, तुझे हर पल सताना।
मुझे मैं याद हूँ ...
तू है नहीं, कैसी सोच है?, यह सोच मेरा सो न पाना
तुझको देखने की ज़िद में, मेरा यूँ झुंझलाना
खुद की बढ़ी मुसीबतो में, डूब जाना,
मुझको याद है, मेरा ' मैं ' के लिए यूँ तिलमिलाना।
मुझको याद है वो पल, मेरा बेचैन होना,
जिस पल तेरा, मुझे छोड़, दुनिया से चला जाना,
मुझको याद है, सच बोलने से, सबका यूँ मुकर जाना,
एहसास होने पर भी, सच को मेरा, यूँ देख न पाना।
मुझे तू याद है ...
मुझे देके तोफहा, जिंदगी का यूँ चले जाना,
एहसास बन, फिर साथ मेरा यूँ निभा जाना,
खुद को खो के, मुझको खींच के यूँ वापिस ले आना,
मीठी याद बनके दिल में मेरे यूँ समां जाना।
“This post is a part of ‘UMeU’ Poetry Blog Hop #UMeUBlogHop organized by Manas Mukul . The hop is brought to you by SoulCraft and You, Me & The Universe.”